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हिंदी फिल्मों की बेहद खूबसूरत अदाकार सुरैया उर्फ सुरैया जमाल शेख अपने समय की सबसे लोकप्रिय और सबसे ज्यादा भुगतान पाने वाली अभिनेत्री थीं. उन्हें मलिका-ए-हुस्न, मलिका-ए-तरन्नुम और मलिका-ए-अदाकारी कह कर सम्‍मानित किया गया. फिल्मी दुनिया में सुरैया और देव आनंद की मोहब्‍बत के किस्से खूब सुनाए जाते हैं. लेकिन सुरैया की नानी को देवानंद का साथ पसंद नहीं था. इसकी वजह थी देवानंद का हिंदू होना.

फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ में गाये अपने आखिरी गीत में सुरैया ने अपनी जिंदगी की दर्दभरी दास्तां बिखेर कर रख दी थी. कला की समूची सीमा को उलांघ जाने वाली हिंदी फिल्मों की एक जमाने की विख्यात गायिका अभिनेत्री लाखों दिलों की मलिका सुरैया ने अपनी शोख, चंचल और मासूम अदाकारी व गायकी से फिल्म जगत की दो दशक तक सेवा की. सुरैया फिल्म जगत में एक माइल स्टोन बनीं. पचास से साठ के दशक में फिल्म जगत में उनके सौंदर्य और गायन की जो गूंज थी, वह आज भी दर्शकों के जहन में है.

कमसिन उम्र में बनी नायिका और गायिका
कजरारी आंखों वाली सुरैया का वास्तिवक नाम सुरैया जमाल शेख था. उसका जन्म गुजरांबाला, पंजाब (अब पकिस्तान) में 15 जून, 1929 में हुआ था. साधारण परिवार में जन्मी सुरैया के पिता की एक छोटी-सी फर्नीचर की दुकान थी. उनका परिवार लाहौर आ गया और सुरैया अपने मामा जहूर अहमद के पास बंबई (अब मुबंई) आ गई. जहूर अहमद फिल्मों में काम करते थे. खलनायक की भूमिका के लिए वे जाने जाते थे. परिवार के अन्य सदस्य भी मुंबई आ गये. उसके पिता को बाद में पता चला कि सुरैया के मुंबई जाने का मकसद क्या है. मुंबई के जेबी पेटिट हाईस्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू कर दी. इस्लामिक शिक्षा घर पर एक मौलवी से शुरू की. बचपन में उसने ऑल इंडिया रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू कर दिया तथा बच्चे का एक गाना रेडियो पर गाया.

मात्र आठ वर्ष की उम्र में सुरैया ने पहला गीत गया था. रेडियो के निर्देशक जुल्फिगार अली बुखारी और संगीतकार नौशाद ने 13 वर्षीय सुरैया की आवाज को सुना तो दंग रह गए. उन्होंने सुरैया से ‘शारदा’ फिल्म में अभिनेत्री महताब के लिए गीत गवाया. सुरैया ने बाकायदा गायन की शिक्षा नहीं ली पर खुर्शीद के रिकॉर्डों को सुनकर गायन का रियाज करती थी.

सुरैया स्कूल की छुट्टी में अपने मामा के साथ स्टूडियो में शूटिंग देखने चली जाती थी. इसका नतीजा यह हुआ है कि बचपन में ही फिल्म ‘उसने क्या किया’ में एक बाल कलाकार की भूमिका मिल गई. इस तरह से सन् 1937 में ही सुरैया ने फिल्म में काम करना शुरू कर दिया. मोहन स्टूडियो में ‘ताजमहल’ की शूटिंग के दौरान निर्देशक नानूभाई वकील की नजर सुरैया पर पड़ गई. नानूभाई वकील को मुमताज की भूमिका के लिए सुरैया का चेहरा पसंद आ गया. उन्होंने सुरैया के मामा जहूर अहमद से बात की और सुरैया को इस फिल्म में जवान मुमताज की भूमिका मिल गई.

ताजमहल से बनीं लाखों दिलों की मलिका
फिल्मों में काम करना सुरैया के पिता को पसंद नहीं था. सुरैया की मां मलका भी बहुत खूबसूरत थीं. महबूब साहब ने उनको फिल्म में काम करने ऑफर भी दिया था. पर सुरैया के पिता के विरोध के चलते सुरैया की मां अभिनेत्री न बन सकी. ऐसे में सुरैया को फिल्म में अभिनय करने की इजाजत कैसे देते. जहूर अहमद तथा ‘ताजमहल’ के निर्देशक नानूभाई वकील के बहुत समझाने के बाद कहीं वे माने और ‘ताजमहल’ फिल्म से लाखों दिलों की मलिका बनने वाली सुरैया का अभिनय की दुनिया में प्रवेश हुआ.

इस तरह से सुरैया के गायन की शुरूआत ‘शारदा’ फिल्म से सन् 1941 में की तो अभिनय की शुरूआत 1942 में ‘ताजमहल’ फिल्म से की. इसी बीच सुरैया ने ‘स्टेशन मास्टर’ और ‘तमन्’ना फिल्म में भी काम किया. पर नायिका बतौर सुरैया को पहचान ‘इशारा’ फिल्म से मिली जिसमें उसके हीरो पृथ्वीराज कपूर थे. उसके बाद गायन और अभिनय के क्षेत्र में सुरैया ने धूम मचा दी.

देवानंद ने बचाई सुरैया की जान
सुरैया अपनी फिल्मों के गाने खुद ही गाने लगी. अभिनेत्री के रूप में कला की समूची सीमा उलांघ दी. ‘अनमोल घड़ी’, ‘दर्द’, ‘दीवान’, ‘दास्तान’, ‘मिर्जा गालिब’, ‘लाल कुंवर’, ‘चार दिन’, ‘बालम’, ‘उमर खैयाम’, ‘आज की रात’, ‘परवाना’, ‘डाक बंगला’, ‘स्टेशन मास्टर’, ‘तदवीर’ के अलावा सुरैया ने अपने प्रेमी देवानंद के साथ ‘सनम’, ‘जीत’, ‘विद्या’, ‘शायर’, ‘नीली’, ‘अफसर’ और ‘दो सितारों’ में काम किया. ‘विद्या’ फिल्म में ‘किनारे-किनारे चले जाएंगे’ गाने की शूटिंग के दौरान नाव पलट जाने से डूब रही सुरैया को बचाने का एक साहसिक काम देवानंद ने किया था. सका एहसान वह जीवन भर नहीं भूली थी. इस घटना से उनका प्रेम और प्रगाढ़ हुआ था.

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हिंदी फिल्मों के गायक मुकेश के साथ ‘माशूक’ में तथा गज़ल सम्राट तलत महमूद के साथ ‘वारिश’ तथा ‘मालिक’ में काम किया. अपने भाई के विशेष आग्रह पर सुरैया ने 1963 में फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ में काम किया था. इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर की पत्नी तथा प्रेमनाथ की मां बनी थी. सुरैया की बतौर नायिका पहली फिल्म ‘इशारा’ थी जिसमें अभिनेता पृथ्वीराज कपूर थे और अंतिम फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ में भी पृथ्वीराज कपूर थे. इस फिल्म में उन्होंने एक गीत भी गाया था- ‘ये कैसी अजब दास्तां हो गई, छुपाते-छुपाते बयां हो गई.’ इस फिल्म में दर्शकों ने उनका अभिनय भी देखा था तथा गीत भी सुना.

प्रधानमंत्री भी थे सुरैया के फैन
‘मिर्जा गालिब’ फिल्म सुरैया के जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म में उन्होंने अभिनय किया और गालिब नज्मों में अपना सुर भी दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी गाई ग़ज़लों की प्रशंसा करते हुए कहा था- ‘सुरैया ने गालिब की रूह को जिंदा कर दिया’. उस दौर के प्रतिष्ठित निर्देशक सुरैया को अपनी फिल्मों लेने के लिए आतुर रहते थे. क्योंकि दर्शक सुरैया को इतने दीवाने थे कि उसकी झलक देखने के लिए आतुर रहते थे. तब के प्रतिष्ठित निर्देशक डीडी कश्यप के साथ सुरैया ने ‘आज की रात’, ‘बड़ी बहन’, ‘कमल के फूल’, ‘दो सितारे’ तथा ‘शमा परवाना’ में तो निर्देशक एआर कारदार के साथ सुरैया ने ‘दर्द’, ‘दिल्लगी’, ‘दास्तान’ तथा ‘दीवाना’ में काम किया. सुरैया ने निर्देशक एम.सादिक के साथ ‘जगबीती’, ‘डाक बंगला’, ‘काजल’ और ‘चार दिन’ फिल्म में काम किया.

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सुरैया को फिल्म की सफलता एक कुंजी माना जाता था. वह अपने जमाने की सबसे अधिक मशहूर गायिका-अभिनेत्री थीं. और सबसे ज्यादा फीस लेती थीं. सेहत ठीक नहीं होने और काम के बोझ के कारण सुरैया को उस जमाने की मशहूर फिल्म- ‘बेजूबावरा’, ‘देवदास’ और ‘नागिन’ में काम करने से मना कर दिया था. जबकि इन फिल्मों में काम करके मीना कुमारी, वैजयंती माला और नरगिस स्टार बन गईं.

गीतों की दीवाने लोग
सुरैया की गीतों की अपने जमाने में धूम थी. उन्होंने बचपन में ही गाना शुरू कर दिया था. इस कारण बचपन से उनकी ढेर सारी फिल्में थीं जिनमें उन्होंने गाया और अभिनय भी किया. उनके न भूलने वाले गीतों में – पनघट पे मुरलिया बाजे, बागों में कोयल बोली (इशारा), मस्त आंखों में शरारत कभी ऐसी तो न थी (शमा), लिखने वाले ने लिख दी मेरी तकदीर में बरबादी, बिगड़ी बना वाले बिगड़ी बना दे, ओ दूर जाने वाले वादा न भूल जाना, तेरे नयनों ने चोरी किया मेरा नन्हा से जिया परदेसिया (प्यार की जीत), तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी (दिल्लगी), चले वो दिल की दुनिया बरवाद करके (दर्द), पीपल की छांव में ठंडी हवाओं में (डाक बंगला), देख ली तेरी दुनिया और मेरा दिल भर गया (बालम) के अलावा मिर्जा ग़ालिब की नज्म ‘इश्क पर जोर नहीं गालिब’ के अलावा मिर्जा गालिब की सभी नज्मों और ग़ज़लों और नज्मों को जितने संजीदगी से सुरैया ने गाया वैसा कोई और गायक नहीं गा सका.

सफलता की मंजिल और दर्द के साये
एक तरफ सुरैया अपनी फिल्मों के माध्यम से लाखों दिलों की मलिका बन रही थी. सफलता की सीढ़ियां चूम रही थी. लेकिन निजी जीवन में वह सच्चे प्यार को तरसती रही. एक-एक करके लोग उसके दिल में बसते रहे और दर्द बसा कर जाते रहे. अभिनेत्री बीणा का भाई इफ्तखार सुरैया का सच्चा प्रेमी था. वह उसके बंगले के सामने आकर पत्र छोड़ता जिसमें लिखा होता- ‘मैं तुम्हारे प्यार की भीख मांगता हूं.’ एक दिन सुरैया ने उससे कहा- ‘यदि तुम मुझे दिल से चाहते हो तो कल से इधर आना छोड़ कर अपना विवाह कर गृहस्थी बसा लो.’ इफ्तखार ने शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली और सुरैया की याद में खो गया. निर्माता पीएन अरोड़ा से रोमांस की खबरों से पत्रिकाएं और अखबार रंगने लगे तो सुरैया ने रक्षाबंधन के दिन अरोड़ा को राखी बांध कर सबको चुप कर दिया. सुरैया के प्रेमियों में ओम प्रकाश, जयंत देसाई और निर्देशक एम. सादिक का नाम लिया जाता था. पर सुरैया के दिल में सर्वाधिक हलचल पैदा की थी- देवानंद और हॉलीवुड के अभिनेता ग्रेगरी पेक ने.

देवानंद और सुरैया की प्रेम कहानी
देवानंद सुरैया से सच्चा प्रेम करते थे. सुरैया भी देवानंद को चाहती थी. पर दोनों के बीच धर्म की दीवार खड़ी हो गई. ‘विद्या’ फिल्म की शूटिंग के दौरान ही दो दिल एक हो चुके थे. देवानंद ने सुरैया को हीरे की एक अंगूठी दी थी. उस जमाने में उसकी कीमत 3000 रुपये थी. सुरैया देवानंद को कभी-कभी ग्रेगरी पैक कहकर भी पुकारती थी. सुरैया के बैड रूम में देवानंद और ग्रेगरी पेक, दोनों की ही तस्वीर रहती थी. देवानंद के साथ उसकी सभी फिल्में सफल हुईं. दोनों की जोड़ी काफी चर्चित रही थी. दोनों का प्रेम दर्शकों को भाने लगा था. सुरैया की मां मलका ने एक बार दोनों के प्यार की भावनाओं को देखकर ‘हां’ भी कर दी थी. पर सुरैया की नानी ने इस शादी के बीच धर्म की दीवार यह कहकर खड़ी कर दी कि देवानंद इस्लाम कबूल कर पहले मुसलमान बन जाए, उसके बाद सोचेंगे. देवानंद मुसलमान बन न सके और यह शादी हो न सकी. देवानंद निराश हो गये.

फिल्म जगत के बहुत से लोगों ने कोशिश की दोनों का विवाह हो जाए पर ऐसा ही नहीं सका. सुरैया का परिवार दिलों के दर्द को समझ न सका तो सुरैया ने शादी से इनकार कर दिया. सुरैया आजीवन कुंवारी रही. देवानंद ने अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी करके गृहस्थी बसा ली.

ग्रेगरी पेक से हसीन मुलाकात
हॉलीवुड अभिनेता ग्रेगरी पेक की सुरैया बहुत बड़ी प्रशंसक ही नहीं थी बल्कि दिल से उन्हें प्यार भी करती थी. सुरैया अपने जीवन की उस सुखद घड़ी को कभी नहीं भूल सकी जब उसकी ग्रेगरी पेक से इत्तेफाक से मुलाकात हो गई. हुआ यह कि एक बार ग्रेगरी पेक शूटिंग के सिलसिले में कोलंबो जा रहे थे. अचानक हवाई जहाज खराब हो जाने के कारण उन्हें मुंबई उतरना पड़ा. उन्हें जब यह मालूम हुआ कि यहां की सुप्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री सुरैया उनकी दीवानी है तो उन्होंने मुलाकात के लिए पांच मिनट निकाल लिए. परंतु सुरैया की खूबसूरती को देखकर ग्रेगरी पेक मुग्ध हो गये और सुरैया के बंगले पर दोनों की अविस्मरणीय मुलाकात पांच मिनट नहीं बल्कि आधा घंटे चली. सुरैया बीते दिनों को याद करते हुए ग्रेगरी पेक के पत्रों को पढ़ती रहती थीं

सुरैया को मिली ‘मलिका-ए- तरन्नुम’ की उपाधि
सुरैया दर्शकों की अभिनेत्री थी. उसे दर्शकों का इतना प्यार मिल रहा था कि अलग से मिलने वाले सम्मानों के लिए फुर्सत ही नहीं थी. सुरैया को ‘मलिका-ए-तरन्नुम’ के खिताब से नवाजा गया था. उसकी ख्याति का एक उदाहरण यह भी है कि लोनवाला (पूणे) में उसके नाम से ‘सुरैया मार्ग’ भी है.

कृष्ण महल में किया कैद
कभी सुरैया की एक झलक पाने के लिए लोग उसके बंगला ‘कृष्ण महल’ के चक्कर लगाते थे. उसके प्यार की भीख मांगते थे. बंगले के बाहर एक हूजूम बना रहता था. लेकिन अविवाहित सुरैया ने फिल्मों और गायकी से जब संन्यास लिया तब उसकी उम्र केवल 34 वर्ष थी. संन्यास लेने के बाद सुरैया ने खुद को बंगले में कैद कर लिया. उसके पास फिल्मों के ऑफर, लेकिन उसने साफ इनकार कर दिया. उसने लोगों से मुलाकात करना बंद कर दिया था. जब उसे लाइफ अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया तो उसे लेने के लिए भी प्रोग्राम में आने से मना कर दिया. बहुत आग्रह के बाद वह यह सम्मान लेने के लिए पहुंची. सुरैया ने किसी के नाम अपनी वसीयत भी नहीं की थी. लाखों दिलों की मलिका और ‘मलिका-ए- तरन्नुम’ अपने तन्हा जीवन से 74 वर्ष की उम्र में 31 जनवरी, 2004 को दुनिया से विदा ली.

(लेखक अवधेश श्रीवास्तव पत्रकार और कथाकार भी हैं. फिल्मी लेखन में विशेष रुचि है. सुरैया पर यह लेख उनकी पुस्तक‘हिन्दी सिनेमाःसामाजिक सरोकार और विमर्श’ में संकलित है.)

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